आतंकी की मौत पर मातम क्यों?

आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी की मुठभेड़ में मौत के बाद उससे हमदर्दी रखने वाले लोगों ने कश्मीर का जन-जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है। हिंसक प्रदर्शनों के दौरान कई लोगों की जानें भी जा चुकी हैं और सुरक्षाबलों के जवानों के साथ साथ 200 से ज्यादा लोग घायल हैं। बुरहान की अंतिम यात्रा में भी हजारों लोग शामिल हुए और पाकिस्तान के झंडे भी लहराए गए। दुःखद स्थिति है पर कश्मीर में ये कोई नई बात नहीं है। चिंता तो इस बात की है कि दिल्ली जैसे महानगरों में रहने वाले कुछ पढ़े-लिखे लोगों का भी बुरहान को समर्थन मिल रहा है।

बुरहान से हमदर्दी जताने वाले लोग ये दलील देते हैं कि हालात ने उसे बंदूक उठाने पर मजबूर किया। इससे दुःखद बात क्या हो सकती है कि पढ़ा-लिखा एक तबका ऐसे तर्क दे रहा है। क्या इस देश में कानून नहीं है? क्या आपके साथ अगर कुछ गलत हो जाए तो आप बंदूक उठा लेंगे? इससे भी बड़ी बात तो ये है कि अगर उसने ये सब बदला लेने के लिए ही किया था तो निर्दोष लोगों से उसकी क्या दुश्मनी थी? उसने अमरनाथ यात्रियों पर हमले की धमकी का वीडियो क्यों जारी किया था? उसने अपने ही मुल्क़ के दुश्मन आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन का हाथ क्यों थामा? बुरहान वानी एक आतंकी था इसे स्वीकार करना ही होगा और एक आतंकी का पक्ष लेना भी उतना ही गलत है ये भी समझना होगा। वानी घाटी में भटके हुए कुछ युवाओं का आदर्श बन बैठा था, पर अचानक पढ़े-लिखे, बड़े शहरों में रहने वाले कई युवाओं के दिल में उसके प्रति हमदर्दी क्यों जागी ये सोचनीय विषय है और दुःखद है।

पहले भी विवादों में रहे व देश की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी जेएनयू के छात्र उमर खालिद ने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में तो आतंकी बुरहान को ‘क्रांतिकारी’घोषित कर दिया है। सवाल है कि अगर उमर जैसे कई पढ़े-लिखे नौजवानों को अपने देश के खिलाफ लड़ने वालों से इतनी हमदर्दी है तो क्यों वे देश के संसाधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं? या तो वे इसे अपना मुल्क़ मानें या किसी और मुल्क़ में जा बसें। ये देश आतंकियों व उनके हमदर्दों को बर्दाश्त नहीं करने वाला। ये देश तभी तक हमारा है, जबतक हम इसके हैं। किसी भी कीमत पर आतंकवाद का समर्थन जायज नहीं और ये मानवता के विपक्ष में खड़े होने के समान है। हमें ये तय करना होगा कि हम लकीर के किस तरफ खड़े हैं। इसकी एक तरफ जन्नत है और दूसरी तरफ दोज़ख़, एक तरफ खुदा है तो दूसरी ओर शैतान। अब चयन हमें करना है।